Monday, 5 September 2016

एक नज़्म , सबकी नज़्र(मेरी भी)

गर  हो  आग, तो जलने दो 
चिंगारी को शोला बनने दो

मान  लिया  तुम  हो  बहुत जहीन
इस भरम को भी भीतर पनपने दो

छूटे  न  जुस्तजू   वजूद  तलाशने  की
भटक रहे हो इस कवायद में तो भटकने दो

गम  जो  दूर  न  कर  पाओ तो यूँ करो 
पास में रखकर ही उन्हें , खुशियाँ पलने दो

कयामत की यहाँ फिक्र किसको है 
जो हो रहा है, बस होने दो...........!

--- विनोद ..

04 September 2016
8;00 pm


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