'..न हो क़मीज़ तो घुटनों से ढँक लेंगे पेट ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए.."
" मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ मैं इन अंधे नजारों का तमाशबीन नहीं.... "
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