Monday, 5 September 2016

जहालत की हद् :" एेसी बेकार औरतें को तो मर जाना चाहिए....

हम इतने जाहिल क्यों हैं...? कुछ दिनों पहले अमृता प्रीतम जी का जन्मदिन था। मैंने पिंजर 6-7 साल पहले और रसीदी टिकट(कुछ कुछ जितना हाल में ही  फ्री में ऑनलाइन मिला) पढी थी। हाँ बार बार लोगों से सुना कि अमृता जी साहित्य में, खासकर पंजाबी साहित्य में बहुत सारा काम किया। चलो ये तो थी एक बात दूसरा ये कि वो अपनी निजी जिंदगी के चलते बहुत मशहूर ओ मारूफ रहीं, साहिर ,अमृता और इमरोज़ का लव ट्रैंगल सबको पता ही है। अब काम की बात ये है कि जिस वजह से ये सब  चेप रहा हूँ। जैसा मेरा मानना है कि कौन कैसे निजी जिंदगी जी रहा है, क्या कर रहा है उसकी मर्जी। हाहाकार क्यों  मचाता है समाज इतना समझ नहीं आता , जैसे की उनका कुछ छीन रहा हो। शादी होना, नहीं होना, होकर टूटना भी किसी का अपना इसु है। अब वाकया इतना है कि उस दिन ही सुबह-सुबह बुकस्टोर से इमरोज़ और अमृता के खतों का संग्रह लेकर आया। बहुत अच्छा था वो। मुझे तो लगा ही जैसा बहुतों को लगा है और शायद हमेशा लगेगा। मेरे कुछ दोस्त हैं, उन में से एक दोस्त है जो थोड़ा एंटी है, होना भी चाहिए "निंदक नियरे राखिए" कबीर ही कह कह गए हैं। हुआ यूँ कि एक दोस्त के घर जाकर हम चार लोग बैठ गए अपना अपना ताम झाम पकड़ कर। हम में से दो लोग(मैं और एक और) वहीं अमृता पर खोज खोजकर पढते रहे, खाना भी नहीं खाने गए तो बचे हुए दो में से वो आया जिसको इस लेख  का क्रेडिट है बोला "क्या लगे हो यार बकवासबाजी करने में" ,हम दाँत चियार दिए। फिर बोला हमें भी बताओ, हमने बड़े प्यार भरे मर्म में डूबी गाथा सुनाई। यहाँ तक बता दिया था कि इमरोज़ ने पूरे घर में अमृता की पेंटिंग्स बनाई और सजाई, वो बोला " एेसी बेकार औरतें को तो मर जाना चाहिए, मर्यादा नहीं पता होती है इनको। अपने पति को छोड़कर क्या भला होगा उसका.." 
मजाक होता या नाना पाटेकर स्टाइल में मिमिक्री होती तो मजाक ही सही समझ कर चुप हो लेते  पर उसने कहकर किताब फेंक दी और बोला "क्या बकवास पढते रहते हो तुम लोग" हम लोगों ने add कर के बताया कि " भाई पता है तुझे वो लोग एक घर में रहकर भी अलग अलग कमरों में रहते थे। बोला " तुम्हें बडा पता है, तुम रात को बैडरूम चैक करने गए क्या? " और फिर खामखा की बहस हो गई कि वो नाराज हो गया और हम भी। 
बात अमृता की कहानी नहीं है भाई, देख तूने समझना है नहीं पर फिर भी खुदा न खास्ता ये  पढ़कर चुपके से scroll करना। बात अमृता की नहीं है न ही इमरोज़ और न साहिर या फिर न प्रीतम की है। बात है स्वच्छंद होकर भी दुनिया के कोनों में दुबके समाज के भौंडे उसूलों को तक देखकर तालमेल बना कर जीना। जहालत की हद यही है कि हमारे लिए हर दूसरी लड़की जो हमें भाव न दे, वो बर्बाद, मर्यादाहीन(दोस्त की जुबान में) चरित्रहीन हो जाती है। ठरक इतनी है कि पुरुष शौचालयों में तक एेसा एेसा लिख आते हैं मत पूछो। तर्क मर गया है, जरा दिमाग नहीं लगाते लड़के ,कि पुरूष शौचालय � में लड़की भला क्यों आएगी वो भी तब जब पूरी दुनिया में एेसे ही कुंठित  शौच लेखक घूम रहे हों। मंटो की कहीं पर कही बात याद आ रही है कि " जिस दिन से हम औरत के सीने को सीना मात्र समझकर कुछ और नहीं समझेंगे, तब ये सब कुकर्म और उत्पीड़न बंद हो जाएँगे "। अब इतनी लंबी पोस्ट ठेलने का मकसद सिर्फ इतना है कि block तू करेगा नहीं आखिर गाने में ही दूँगा तुझे, और आगे भी घूमने भी साथ जाना है जंगलों में चार लोग पढ लें और फिर लिख अपने विचार कमेंट में। एेसा है भाई ज्यादा फालतू नहीं बोलते। कम से कम बहस करते समय पंद्रह बीस मिनट तक जो भी तूने बोला याद करना और फिर सोचना। आज याद आ गई, सबक सिखाने की virtual फजीते से। खैर ये फोटो में वो लाईन हैं जो मैंने एक बेहतरीन 
(अमृता और इमरोज़ की किताब की वो पंक्तियाँ जो उस ब्लॉग में मिली)
 ब्लॉग में पढी थी फिर ही किताब ली। एक और बात , ये जो मर्यादा शब्द हैं  ना समाज ! .. इतना ज्यादा भी कॉम्प्लिकेटेड नहीं हैं.  ठीक हुआ फिर
थैंx.....!

धन्यवाद 

04 september 2016
11;00 pm

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