मैं मरना नहीं चाहता, बहुत अजीब है ना? बिल्कुल अजीब है। हो भी क्यों न? भला ये भी कोई बात हुई बताने कि "मैं मरना नहीं चाहता "?
मजा तो दुनिया को वो खत पढने में आता है जिसे Suicide Note कहते हैं, क्योंकि ये बहुत पहले ही विद्वान कह गए हैं कि "The world never stand with living, it always Stoodleigh with corpse" अर्थात ये कि किसी के जिंदा होने पर दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता पर उसके मरते ही पूरी दुनिया उसकी हो जाती है।
अब आते हैं मुद्दे पर कि मैं क्यों नहीं मरना चाहता..?
मैं नहीं मरना चाहता और साथ ही न किसी को मरा देखना चाहता हूँ। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरा जीवन इतनी जल्दी समाप्त हो जाए कि मैं किसी के भी जीवन को बेहतर करने में योगदान न दे पाऊँ, दुनिया में बहुत लाचारी है और लाचारी के मारे लोग बहुत दुखी हैं। मैं चाहता हूँ कि किसी की तो कम से कम लाचारी कम कर जाऊँ।
मैं नहीं मरना चाहता क्योंकि अगर जीते हुए ही दुनिया न देख पाए तो पैदा होने का ही क्या फायदा।
ताज्जुब है जो लोग मर जाते हैं, ताज्जुब है कि शरीर नश्वर है फिर भी लोग पूरा जीवन अपने नीच स्वार्थों में काट देते हैं। अब स्वार्थ कह ही रहा हूँ तो ये भी तो मेरा स्वार्थ है कि "मैं मरना नहीं चाहता " हाँ है,बिल्कुल है। पर इसमें कोई नीचता नहीं है। क्यों?
चलो समझाता हूँ, मैं देखना चाहता हूँ कि कैसे इतने लोग बसे, जानना चाहता हूँ कि क्या था वो इतिहास जिसके कारण हमारा वर्तमान है। नीचता का स्वार्थ इसलिए नहीं है क्योंकि मुझे लोभ भी नहीं है किसी चीज का। दुनिया की नजरों में भले ही मुझ जैसों को पागल/बेवकूफ़ कह दिया जाता हो पर ये तो बता दो कि जीवन भर शुंअर बनकर खुद का उदर भरना, दूसरो से जलना,ईर्ष्या रखना, दान के नाम पर खुद के भय के मारे एक कटोरा शनिवार को दे देना ये कौन से अच्छे लोगों के काम हैं भई? अगर ये अच्छे लोग होते हैं तो हम लोग पागल ही सही। एेसे ही मजा आएगा नि? चलने के लिए भगवान् ने पैर दिए हैं, और दिमाग दिया है तो दिमाग इस्तेमाल कर के चलते रहने में ही भलाई है।
तब तक की जब तक पैर के छाले न फूट पड़ें और फिर आराम कर के चलते रहना। चलते ही जाना
© vinod atwal
Written on - January 14,2015
No comments:
Post a Comment