Friday, 12 August 2016

Review: Rustom में ज़ी न्यूज़ के संपादकों का मिनी रूप भी

Cynthia Pavri  मुझे बर्फी मूवी से ही अच्छी  लगती हैं . हालांकि ज्यादा पिच्चरों में नहीं आयी इसलिए टाइम लगा पंद्रह मिनट सोचने में की कहाँ देखि , कहाँ देखी ? अब जब मुझे ही अच्छी लगी तो भला पिच्चर के विलन को क्यों ना अच्छी लगती . तो हो गया स्यापा . बचपन से एक कहावत स्कूल के बच्चों के मुह से जब तब फूटती थी की " फौजी फौज में , पड़ोसी मौज़ में ." हाँ तो डायरेक्टर ने पूरा फोकस इसी घिसे पीते फॉर्मूले पर दिमाग खपाकर बनाई है रुस्तम. पति नेवी में कमांडर है , बीवी(Elina D'cruz) हर्ट है तो कोई और मर्द(अर्जन बाजवा ) उसको कुछ समय टाइम पास करा देता है . पति(रुस्तम पावरी)  लौटता है तो प्रेम की पाती पढ़ लेता है गुस्से में जाकर धाईं धाईं धाईं कर के तीन गोलियां विलेन(अर्जन बाजवा ) के दिल में उतार देता है . सरेंडर कर देता है पति. बाकी की भसड़ चलती रहती है . कोर्ट कचहरी चलती है . रुस्तम जो की नेवी में है तो कुछ पंगे वहां भी होते हैं उसकी ईमानदारी की वजह से, जिसको वो हथियार बना कर कुछ ऐसी तिकड़म कर लेता है की " सांप मरे ना लाठी टूटे ". 
पिक्चर का फर्स्ट हाफ चूहा दौड़ में लगा रहता है . दूसरा हाफ अच्छा कह दे रहा हूँ  . अब कह रहा हूँ  तो मतलब ढंग का लगा तभी . एक अखबार  मालिक ने कॉमेडी कर के कॉमेडी की ही धज्जियां कर दी हैं बाकी इंडियन ड्रामा टाइप है मूवी. आप लोगों को ज़रूर अछि लगेगी . मुझे भी लगी अच्छी...?
सबसे अच्छा पार्ट मुझे कोर्ट के अंदर की सुनवाई का लगा. थोड़ा दिमाग लगाओगे  तो पता चलेगा की आजकल की उन्मादी भीड़ (जो बस  बिना सोचे समझे extreme perception बना लेती हैं, मसाला  खबर  या मामला मिलने पर) जो कभी भी कसी भी बात पर खुस और कहीं पर भी नाराज़ हो जा रही थी. अखबार  या  खबर के पैरोकारों की भी अच्छी क्लास लेती है पिक्चर .
      हम किसी भी  खबर पर कितनी जल्दी विश्वास कर लेते हैं ना. इसका फायदा पिक्चर में अखबार  मालिक बहुत उठाता है और वो भीड़ के मूड को बार बार बदलने में कारगर साबित होता है . आजकल भी तो यही  ही हो रहा है ना ? हो रहा है ? चलो खुद से पूछ लो देशभक्तो .. पिक्चर में आजकल के एक देशभक्त और सामजसेवी चैनल ज़ी न्यूज़ के एक संपादक सुधीर चौधरी जी से प्रेरित एक मिनी सुधीर चौधरी बच्चा बना है 
 नीरज पांडेय की पिक्चरों की यही बात(समाज की राग पकड़ने वाली ) मुझे बहुत अच्छी लगती है. उनकी हर एक पिक्चर आम आदमी ( पार्टी वाली नहीं हाँ ) की आम ज़िन्दगी और मानसिकता का पहलु और पल्लू दोनूँ थाम लेती है.
सबसे अच्छे  पिक्चर के लास्ट में  पंद्रह बीस मिनट लगते हैं जब पता चलता है की विलेन को मारने की वजह रुस्तम की बीवी का short term प्रेम नहीं होता बल्कि कुछ और होता है. वहां पर सस्पेंस खुलता है और हम
( मतलब  मैं, आप सब ) ठगे से रह जाते हैं की जो अभी तक चल रहा था ये कुछ और ही था . इसी तरह की एक हॉलीवुड मूवी  है बहुत पुरानी,  नाम याद नहीं आ रहा, शायद नीरज जी ने वो देखी ,देखी  ही होगी. जो भी है आप जा सकते हैं देखने क्योंकि इसमें कलर्स, स्टार प्लस के  daily soaps का भी पूरा फ्लेवर है . पवित्र रिश्ता की आई और खिचड़ी के बाबूजी ने पिक्चर को अच्छा होते होते बचा लिया...
Elina D'cruz तो बहुत सुन्दर हैं ही , एक्टिंग भी अच्छी करती हैं(बर्फी बहुत अच्छी थी उनकी). अक्षय कुमार अब भले ही Canadian  भी हो गए हों पर हम देशभक्तो के लिए बहुत मसाला मूवी दे रहे हैं . इस लगता है मानो सरकार से ज्यादा काम तो देश के लिए वही कर रहे हैं इसलिए ज्यादा असर नहीं है उनकी प्रजेंस का. एयरलिफ्ट टाइप की लगती है कहीं कहीं तो . मेरा सबसे fvourite  scene  वो था जब अक्षय अर्जन बाजवा के घर जाते हैं और उस से पूछते हैं की "विक्रम तुम सिंथिया से शादी करोगे ? " मतलब ये है की इंसान को इतना सहज और स्वीकार्य होना चाहिए. हालांकि बाद में पता चलता है की इस कोई scene  घटित नहीं हुआ था वो सब अक्षय का तिकड़म था . अब वही सस्पेंस जा ने के लिए सबने मूवी देखनी चाहिए
पिच्चर जब बहुत appealing  दिखे तो दो चीज़ें होती हैं या तो बहुत बोरिंग होती है या फिर बहुत interesting  कुछ दिनों पहले सुल्तान नाम की पिच्चर भी हवाबाज़ी के चलते, भाई के नाम के चलते बहुत जेबें गरम ठंडी दोनु कर गयी . क्योंकि आप पर है ना की आपको केसी लगी . चलो मैं यहीं बक देता हु की मैं आज रूस्तम देख आया . जिस जिसको खामखा की बकैती काटना या फिर देखना अच्छा लगता हो . उन लोगो के लिए तो ये लाजवाब पिच्चर है .
अब जाकर देख भी आओ यार...
ऋतिक रोशन  की मोहेंजो दारो भी देखी उसके लिए भी लिखेंगे कुछ टाइम में तब तक ये पिक्चर देखो.
--> धन्यवाद <---
विनोद

© vinod atwal
12 August 2016, Friday

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