यूँ ही एक दिन कही बैठे बैठे ये लोग दिख गए . अब ये थोड़ी बताऊंगा की कहाँ बैठा था नहीं तो आपको पता नहीं चल जायेगा की रोड के किनारे चबूतरे पर तशरीफ़ रखी थी हमने . खैर अब रख ही दी तो आगे भी सुन लो .
उंगलियां "दी गार्डियन" की साइट पर खुरपेंच कर ही रही थी की सामने नज़र रुक गयी . नज़र तो रुकी ही थी पर नज़र रुकी, रुकी हुई स्कूटी पर . मतलब ये की सामने स्कूटी रुकी तो नज़र रुकी. नहीं पढ़ पाया स्कूटी की कंपनी का नाम . निकटदृष्टि दोष (अँगरेज़ Myopia कहकर जा रखै हैं ) अगली बार ज़रूर बताऊंगा .
हाँ तो हम कहाँ थे , स्कूटी रुक गयी . तब तक भी हम " दी गार्डियन " पढ़े जा रे थे , दलित आंदोलन चल रहा था, साइट पर भी , दिमाग में भी और गुजरात में तोह चला ही रहा है माने तीनो जगह. स्कूटी कब रुकी पता ही नहीं चला , अचानक ही रुकी होगी ना ? हाँ अचानक रुकी फिर . उफ़ बात आगे बढ़ ही नहीं रही है . स्कूटी रुकी तो सुनाई पड़ा की जल्दी यानी झट से अमीर हनी का जिक्र छिड़ चूका था , किसके बाप का दलित समाचार , किसका गार्डियन . यार बात हो अमीर बनने की वो भी शॉर्टकट से तो भला कोई दूसरे ग्रह का ही होगा जो नहीं सुनी . हम कान लगा के सुनने लग पडे , हम अकेले थे , हाँ हम तो थे पर अकेले बैठी थे.
हाँ तो हम कहाँ थे ? बात निकली अम्बानी बनने की. हमने भी कान सटा दिए .
हज़रात तो दिल थाम कर बैठ जाइये क्योंकि जो मैं अब आगे बताने जा रहा हूँ उस से आपको हृदयघात भी हो सकता है . अबे डरते क्यों हो ना होगा अभी ही दुआ करे हैं हम आपके लिए.जी हाँ आगे यूँ हुआ की जो आदमी हरी रंग की टी शर्ट में दिख रहा है , वैसे दिख तो हरे रंग में दो रहे हैं नि ? आँखें मलिए , मल ली ? अच्छा तो मल ली तो फिर एक बार मुह भी धो लीजिये . इसका कष्ट आप नहीं करेंगे, आलसी जो हो हमारी तरह , ठिकी ठहरा . अब देखो , अरे आप अगर मुह धो भी लेते तो भी आपको वो दो हरी टी शर्ट दिखती. चंद्रकांता का ज़माना गया यार, बी लॉजिकल जब दो लोग हैं और दोनू ने ही हरी टी शर्ट पहनी हैं (जो उनकी यूनिफार्म है शायद) तो फिर आकि ज़ुर्रत कैसे हुई की आप हमारे आँखें मलने और मुह धुलने धुलवाने के बहकावे में आ गए .
हमें पता है आपने मुह नहीं धोया, आप धोते भी नहीं होंगे, हम चेहरे की बात कर रहे हैं हाँ . पर आप आँखें ज़रूर मल लिए थे ना ? मलने का फायदा उठाओ और आगे पढ़ो . स्कूटी वाले ने कंगाली की कोई व्यथा ज़ाहिर की तो ये दाहिने हाथ में स्कूटी वाले के पास वाले 'अर्थशास्त्र के दिग्गज महोदय ने सैमिनार शुरू की " How to be rich " बताने लगे (हाथ हिला हिला कर ) की कैसे कैसे लोग देखे हैं उन्होंने अमीर होते हुए . कह ही रहे थे की उन्हें , उनके जवानी के दिन याद आ गए जब वो विधिवत जवान हो रहे थे .
एक लड़का था विकास नाम का (ध्यान रहे मोदी जी वाला विकास नहीं हाँ ) उनके पड़ोस के मोहल्ले में . तो जो अर्थशास्त्री चचा ने कहा उनके ही फीलिंग्स में कह दूँ ? नहीं भी चहोहोगे तो भी मैं बताऊंगा ही जो उखाड़ सको उखाड़ लो .
" अरे हमऊ देखै रहे , लौंडा जवान ही रा था . छंटा हुआ बदमाश सा भी ना लगा , बच्चा सा ही था. पैले हमाए लोगन के साथ ही साफ़ सफाई, झाड़ू करता था फिर करते करते लोहा इकट्ठा करने लगा . लोहा इक्क्ठा कर चुराने भी लगा. का ढेर लगा दिया वो लोहे का .
खूब लोहा चुराया वो . चालु बहुत रहा वो . उसने गैंग बना ली बहुतै बड़ी , चार case हुए उसपर . केस ही गए पर पुलिस जान ना पा कैसा दिखै वो , वो भी कर्मचीलोणा एक जगह टिकी ना कभी इधर कभी उधर. गाँवों में का रुतबा कर लिया वो , पूछो मत साहब . गाँव वाले स्वागत करते . एको दिन पुलिस पूरी फाॅर्स लेकर जान कहाँ कहाँ से पता कर कर धार दी ओ . देखा, तलाशी ली . चौनक गयी ओ देख . विकास लागे बच्चा , लागे का था ही बच्चा. ओ की मूछें भी न जमी हुई . हवलदार से पुछैय रहें कोतवाल "जा ही है ?" तलाशी ली तो यहाँ से (कमर के दोनु तरफ इशारा कर के ) निकले कारतूस दाने , उँगलियों से सोने की अंगूठी , चैन गले से . उस टैम के दस हज़ार रुपये नकद .
'16 साल का था जा जब दो मोज़र निकली,' कमर में ठुंसी हुई . कोतवाल बेहोश ....!
स्कूटी वाला लोहा व्यापारी लक्ष्मी निवास मित्तल तो बन ही चुका था ख्यालों में और बाकी के ये बाएं वाले दो भगत भगेलू सुन रहें थे, सुन रहें हैं, सुन रहें होंगे? राम जाने या फिर वही . . सबके दिमाग में उनकी अपनी अपनी पिच्चरें चल ही रही थी की अर्थशास्त्री चचा टोक दिए , बोले " अरे बहुत दिमाग खपाना पड़ै , जे ही अमीर ना बने कोई .."
स्कूटी वाला तो इस्पात tycoon लक्ष्मी मित्तल बन ही चुका था तो पूछ ही मार की क्या हुआ आगे , चचा ने बताया :--
" फिर पुलिस ओ के मोहल्ला में पूछी रही , मूछें भी नहीं जमी उसकी. अरे बच्चा था . लोगो से पुछा उसके मोहल्ले के . अब पुलिस भी किधर मरे केस भी ना बने वा पर . लोगन बताय रहें की पिताजी ना हैं इसके , भाई से बात करो.."
फिर बाएं हरी टी शर्ट वाले ने झाड़ू उठाया और काम में जुटने का आह्वान किया . चचा भी उठ खडे हुए और रोड पर झाड़ू लगाने लगे . कुल मिलाकर सार ये है की कोई भी चोरी, चकारी या चकल्लस करने हेतु पहला और आखिरी फार्मूला या फिर mandatory condition कह लो की तो मूछें जमना जरुरी है, ताकि कोई भी चचा भविष्य में आपके किस्से सुनाएं तो शर्म ना महसूसे की आप जवान या मर्द नहीं थे . जैसे ही चचा सहित दोनू भगेलू भगत काम पर उठी वेसे ही स्कूटी वाला आती जाती लड़कियों को बेतरतीब तरीके से घूरने लगा . चचा ने पूरा किस्सा किसी मांझी नेता की तरह सुनाया और दोनु भगेलू भगतों ने गाहे बगाहे , अनमने सुना भले नहीं सुना पर उन् दो की आँखों में लाचार और बेबस जनता की ही तरह अपने काम झाड़ू (झाड़ू, AAP वालो का नहीं ) लगाने की फिक्र थी .
बाकी खुदा खैर करे..!
--अब अगर अच्छा पढ़ा और मन है की दूसरों को भी पढना है तो इस कदर वायरल करना की ये बात तीन लोगो तक पहुच जाए , चचा तक, विकास तक और स्वर्ग तक . अबे नहीं भी करोगे तो भी हम भूखे मारने वाले हैं नहीं . भूखै मर रहे होते तो लिखते कैसे .--
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