मुझे अच्छे लगते हैं
भीड़ भरे चौराहे
चौराहों पर इंतजार करते लोग
भीड़ भरे चौराहे
चौराहों पर इंतजार करते लोग
अच्छी लगती हैं हर वो आँखें
जो किसी की राह में बेसब्री से
बार बार फोन में समय को तकती हैं
जो किसी की राह में बेसब्री से
बार बार फोन में समय को तकती हैं
हर वो मुस्कान और गलबहियां
जो किसी के होठों और बाहों पर फूट पड़ती हैं
किसी दूर से आए हुए अपने को देखकर
जो किसी के होठों और बाहों पर फूट पड़ती हैं
किसी दूर से आए हुए अपने को देखकर
उन भावों के ठहराव में
डूब जाने को दिल करता है
जो किसी को भी पूरा कर देते हैं
डूब जाने को दिल करता है
जो किसी को भी पूरा कर देते हैं
मुझे अच्छी लगती हैं
चलती हुई बसें
खिड़की में बैठे लोग
चलती हुई बसें
खिड़की में बैठे लोग
अच्छे लगते हैं वो चुनिंदा शख्स
जो बेमंजिल चलते रहते हैं
बिना किसी ठौर, किसी ठिकाने
की परवाह किए, बस चलते हैं
जो बेमंजिल चलते रहते हैं
बिना किसी ठौर, किसी ठिकाने
की परवाह किए, बस चलते हैं
जिनके चेहरों पर कहीं पहुँचने
की बेचैनी रहती है औ
वहाँ पहुँचकर फिर कहीं और की
की बेचैनी रहती है औ
वहाँ पहुँचकर फिर कहीं और की
अच्छी लगती हैं रोडवेज की
वो कंडक्टर और टायर से
ठीक आगे की सीटें
जहाँ पर बेसाख्ता हवा आती है
वो कंडक्टर और टायर से
ठीक आगे की सीटें
जहाँ पर बेसाख्ता हवा आती है
और फिर से, बार बार
जी जाने का मन करता है
सब दुख भूलकर, बीता कल
किसी की पीछे को उड़ती हुई
पान की पीकों में छोड़कर....
जी जाने का मन करता है
सब दुख भूलकर, बीता कल
किसी की पीछे को उड़ती हुई
पान की पीकों में छोड़कर....
मुसाफिर हैं , क्या करें
सब अच्छा लगता है
ठहरना नहीं लगता.....
सब अच्छा लगता है
ठहरना नहीं लगता.....
--- विनोद
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