कल्पना ..!
जब भी तुम याद आती हो
ऊटपटांग जगहों पर
मैं मेट्रो से कार्ड छुआ कर
करोल बाग़ कि भीड़ या
जीटीबी के रेले का हिस्सा बनता हूँ
और
और अनायास ही तुम्हारी स्मृति
एंग्जायटी होने कि हद तक
बेचैन करती है
फिर तड़पता, बुदबुता हुआ
गंतव्य तक चलता हुआ
पहुँचता हूँ
कई बार आयी हो तुम याद
किसी कॉनकोर्स के 'सुलभ' में
चेहरे पर पानी छपकाते हुए
दो रूपये , मेज़ लगाए आदमी
को किराया देते हुए
फिर आता है साथ में ग़ालिब याद
सुरैया कि आवाज में
माथुर लेन में अपराधियों कि भाँती
सर नीचे कर गुज़रते हुए
" ..ख़ाख़ हो जायेंगे हम तुमको.. आह .."
पॉकेट मनी में
तुम्हारा दिया 500 का नोट
सँभालता रहा
विमुद्रीकरण ने उसका इस जन्म तक
मेरे पास सुरक्षित रहना
सुनिश्चित कर दिया है
नोट कागज़ हो चला है कल्पना
तुम्हारी स्मृति नहीं
-- विनोद
जब भी तुम याद आती हो
ऊटपटांग जगहों पर
मैं मेट्रो से कार्ड छुआ कर
करोल बाग़ कि भीड़ या
जीटीबी के रेले का हिस्सा बनता हूँ
और
और अनायास ही तुम्हारी स्मृति
एंग्जायटी होने कि हद तक
बेचैन करती है
फिर तड़पता, बुदबुता हुआ
गंतव्य तक चलता हुआ
पहुँचता हूँ
कई बार आयी हो तुम याद
किसी कॉनकोर्स के 'सुलभ' में
चेहरे पर पानी छपकाते हुए
दो रूपये , मेज़ लगाए आदमी
को किराया देते हुए
फिर आता है साथ में ग़ालिब याद
सुरैया कि आवाज में
माथुर लेन में अपराधियों कि भाँती
सर नीचे कर गुज़रते हुए
" ..
पॉकेट मनी में
तुम्हारा दिया 500 का नोट
सँभालता रहा
विमुद्रीकरण ने उसका इस जन्म तक
मेरे पास सुरक्षित रहना
सुनिश्चित कर दिया है
नोट कागज़ हो चला है कल्पना
तुम्हारी स्मृति नहीं
-- विनोद
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