Thursday, 31 August 2017

एक शाम : ".... तुम जाओ जाओ मोसे न बोलो ...

छोड़ जाने की धमकी दे
डराते थे वे मुझे
 आत्मा सिकुड़ जाती थी मेरी
किसमिश देखा है न .?
रोना स्वाभाविक था ही

पता तो था कि
बेतरह प्रेम है उन्हें मुझ से
हर शाम गोद में उनकी
सर रख बेगम अख्तर सुनना
मानो एक जीवन जी लेना
अपने प्रणय संग
बिना मृत्यु को प्राप्त हुए

मृत्यु कठोर होती है
जीवन को खाँसना और कठोर

फिर एक रोज़ नियति ने उतारा ,बड़ों ने उठाया
गोद में मुझे
रूंधे गले औ' डबडबायी आँखों ने
नसीब के पिटारे से भूतहा जिन्न के निकलने

स्नेह में दी धमकी
के सच होने का संकेत दिया
दुर्घटना में वो
हम दोनो कि बेगम अख्तर के पास
"मुझे ज़िंदगी कि दुआ ना दे..."
सुनने पहुंच गए
एक शाम  !

-- विनोद

"...अरे ओ शकील कहाँ है तू ?

(०१, सितम्बर , २०१७ )

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