जहाँ से फूटती हो वो रोशनी
जो हर स्याह रातों की
मायूसी, खामोशी
और
और आँसू हर ले
निकल पड़ेंगे हम
कुछेक मुसाफिर उस सम्त
किसी भोर,
अँधेरों को धता बताकर
आँखों में
रोशनी की तलाश के लिए
उम्मीद की लौ लिये
किसी ओर
भूल पाएँगे क्या..?
उन सब बीते दिनों को
जिनकी खुशनसीबी ने
रातों को जगाया
बाद में उन्हीं रातों
के सबब ने रुलाया...!
अपने यादों के बक्से
का वो भी तो हिस्सा है
सो बेहतर है उसे याद ही करें
और,
और निकल पड़ेंगे हम
कुछेक मुसाफिर
उन रस्तों पर
जहाँ वो रोशनी
बनती हो, मिलती हो
तृप्त सा कुछ कर दे....."
--- © विनोद
(नवंबर 12, 2016)