Thursday, 27 October 2016

जिंदगी तो जीनी है

रूठ जाए कोई भले,  या मान जाए
छोड़ जाए हाथ,  ले जाए साथ
कुछ भी हो
जिंदगी तो जीनी है
यादें बहुत झीनी हैं

मास्टर की मार, बेवफा का प्यार
पकाऊ कविता का सार, शरीर का क्षार
जो भी गति हो
जैसी भी हवा, रूख तो करनी ही है
जिंदगी तो जीनी है
गरल की बूँदें,  कुछ दिन ही सही
सबने तो पीनी है

बहती धार है जिंदगी शायद
पानी की हो या दरांती की
चलना जब धार पर ही है
तो फिकर क्यों करनी है
गरल की बूँदें,  कुछ दिन ही सही
हम सबने पीनी है
जिंदगी है तो जीनी है

मरकर जीने की कल्पना
कैसे करते हो......?

© vinod

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