Monday, 11 September 2017

पितृपक्ष

पितृपक्ष**

हर खुशखबर पर
हर दुःख की घडी के बाद
सोचते रहना कि
पिता..!
"तुम होते तो
कितना अच्छा होता"
या यूँ कि
"तुम होते तो
ऐसा थोड़ी होता भला "
तुम्हारे जाने से बाद की
सारी यादें ब्लर हो गयी
'पितृपक्ष' वर्ष में
कुछ रोज़ आता है
'पितापक्ष' का कोई दिन दिवस निश्चित नहीं
होना भी नहीं चाहिए
(असुरक्षाओं के अहाते से )

Saturday, 9 September 2017

कुशाग्र और स्मृति


अचकचाते हुए फिर नींद खुल गयी. "मुझे अब भी ऐसे सपने क्यों आते हैं..?" कुशाग्र ने खुद से पुछा.
जिस दिन तुम उसको भूल जाओगे तो सपने भी पीछा छोड़ देंगे " भीतर कहीं बहुत गहरे में, बीज से पौधे का रूप ले चुकी स्मृति ने पलटकर जवाब दिया .
सिरहाने पर रखे चश्मे के डब्बे के ऊपर आज भी उसके शहर का पता था.
"कुशाग्र ज्यादा मत सोचा करो , योर मेमरीज अरे मेकिंग योर कंडीशन पैथेटिक" साइकैट्रिस्ट ने २ हज़ार के गुलाबी नोट में अपॉइंटमेंट शुल्क लेते हुए हिदायत दी.
"हाथों की उँगलियों से ज्यादा साल हो गए उसको गये, अब तो उसका बेटा भी फ्रैक्शंस वाले एडिसन, सब्ट्रैक्शन सीख गया होगा " वहीं बिस्तर पर उधेड़बुन कर ही रहा था कि इस बार स्मृति ने बिना पूछे ही दखल दिया और कहा "बेटे के मैथ्स सीखने से प्रेम में कोई फ़र्क़ पड़ता है क्या ..? पागल..! "
" 'प्रेम' , ये क्या होता है ..? " कुशाग्र ने पलटकर सोचा.
स्मृति ने फिर दखल दिया और क्लियर किया "वही जो तुम हाथों कि उँगलियों से ज्यादा साल बीतने पर भी रोज़ महसूस करते हो"
--(कुशाग्र और स्मृति)  01